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Parkinson's Disease in Hindi -पार्किंसंस बीमारी क्या हैं इसके कारण, लक्षण और इलाज

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क्या आप बढ़ती उम्र के साथ किसी ऐसी बीमारी का शिकार हो रहे हैं जिसमे आपके हाथ पैर सुन्न पड जाते हैं और आपका दिमाग सही से काम करना बंद कर देता है या आपके दिमाग का आपके शरीर के बाकी हिस्सों पर कण्ट्रोल नहीं रहता। ये सभी लक्षण पार्किंसन बीमारी (Parkinson’s disease in Hindi) के हो सकते है। आपको यकीन नहीं होगा पर हमारे देश भारत में हर साल करीबन 10,00000 से भी ज्यादा लोग शिकार होते है। यह एक न्यूरोडिजेनरेटिव डिसऑर्डर है जो हमारे दिमाग के उस हिस्से को निशाना बनती है जो हमारे शरीर को यह बताता है की कोई काम कैसे करना है। ज्यादातर 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग इस बीमारी का शिकार होते हैं, पर यह जरूरी नहीं है की वृद्ध लोग ही इसका शिकार होंगे, बहुत बार आनुवंशिकता के कारण बच्चे बह इस बीमारी का शिकार हो सकते हैं। इस लेख की सहायता से हम ये जानेगें कि इसका मतलब (Parkinson disease meaning in Hindi) क्या होता है और इसके कारण, लक्षण किस प्रकार के होते हैं।

पार्किंसन बीमारी क्या है? 

पार्किंसन रोग कैसे होता है - पार्किंसंस बीमारी दूसरा सबसे आम न्यूरोडिजेनरेटिव डिसऑर्डर है। यह रोग एक ऐसी बीमारी है जो मनुष्य के उस हिस्से को प्रभावित करती है जो हमारे शरीर के अंगो को संचालित करता है। इसके लक्षण इतने कम होते हैं की शुरुआत में आप इसे पहचान भी नहीं पायेंगे। पर जैसे जैसे समय निकलता है आपको हाथ पैरों में कमजोरी महसूस होने लगती है, और इसका असर आपके चलने, बात करने, सोने, सोचने से लेकर लगभग हर काम पर पड़ने लगता है।
 
 इस बीमारी के बारे में करीबन 5000 BC (5000 ईशा पूर्व) से लोगों को ज्ञात था उस समय एक प्राचीन भारतीय सभ्यता ने इस बीमारी का नाम कंपवता रखा था जिसका इलाज उस पौधों के बीजों से किया जाता था जिसमे थेराप्यूटिक होता है जिसे आजकल लेवोडोपा के नाम से जाना जाता है। इसका नाम ब्रिटिश डॉक्टर जेम्स पार्किंसंस के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने 1817 में पहली बार इस बीमारी को विस्तार से शेकिंग पाल्सी के रूप में वर्णित किया था।
 
यह बीमारी अक्सर 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के होने पर होती है पर कभी कभी आनुवंशिकता के चलते भी आप बचपन में ही इस बीमारी का शिकार हो सकते हैं, परन्तु 60 वर्ष की आयु वाले लक्षण इसकी तुलना में अधिक गंभीर होते हैं। वयस्क-शुरुआत पार्किंसंस की बीमारी सबसे आम है, लेकिन शुरुआत में पार्किंसंस रोग (21-40 साल के बीच शुरू), और किशोर-शुरुआत पार्किंसंस रोग (21 साल से पहले शुरू हो सकता है) हो सकता है।
 
पार्किंसंस बीमारी की तीव्रता व्यक्ति- व्यक्ति पर निर्भर करती हैं, कुछ लोग पार्किंसंस बीमारी के साथ लम्बा और अच्छा जीवन जी लेते हैं और कुछ लोग नहीं जी पाते। एक शोध के अनुसार इस बीमारी के साथ जीवन जीने की सम्भावनायें लगभग उतनी ही हैं जितनी सामान्य जीवन सम्भावना। पार्किंसंस रोग के लिए कोई इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को नियंत्रित करके इसका इलाज किया जा सकता है।
 

पार्किंसंस बीमारी का दिमाग पर प्रभाव हिंदी में

Parkinson disease meaning in hindi - हमारे मस्तिष्क की गहराई में, एक निग्रा नामक एक क्षेत्र होता है, इसकी कुछ सेल्स डोपामाइन बनाती हैं,जो एक तरह का रसायन होता है जो आपके दिमाग के चारों ओर से संदेश लाता है। उदाहरण के लिए - जब आपको खुजली करने का मन करता है या किसी गेंद को मारने का मन करता है, तो डोपामाइन जल्दी से उस नर्व को नियंत्रित करने वाले नर्व सेल्स को संदेश भेजता है।जब आपका सिस्टम सामान्य रूप से चलता रहता है तो आपके कार्य करने की क्षमता और गुणवत्ता काफी अच्छी होती है वहीं जब आपको कार्य करने में परेशानी होने लगती है, तब आप इसका शिकार होते हैं। 
 
इसमें आपकी निग्रा की सेल्स मरने लगती हैं, वहीं उन्हें किसी अन्य सेल से बदला भी नहीं जा सकता परिणामस्वरूप डोपामाइन का लेवल गिरने लगता है और वह हमारे दिमाग को सही तरह से सन्देश पहुंचाने में असमर्थ पाता है और दिमाग का कण्ट्रोल हमारे शरीर के अंगों से समाप्त हो जाता है। इसके शुरूआती दिनों में हमे यह बदलाव महसूस नहीं होते पर जैसे- जैसे निग्रा की सेल्स मरने लगती हैं, तब आप उस बिंदु पर पहुँच जाते हैं जब आपको इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं।

पार्किंसन बीमारी के कारण हिंदी में

इसके कारण (Causes of Parkinson’s disease in Hindi) अभी तक स्पष्ट नहीं है, पर यह हमारे दिमाग में डोपामाइन नामक रसायन के स्तर के गिरने के कारण होता है डॉक्टर्स के अनुसार जब निग्रा की सेल्स मरने लगती हैं तो डोपामाइन का स्तर गिरने लगता है और वह शरीर के बाकि अंगों से मिलने वाले संकेतों को दमाग तक पहचान बंद कर देता है परिणामस्वरूप मनुष्य में चलने फिरने में परेशानी होना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
 
निग्रा की सेल्स के मरने का कारण नहीं पता परन्तु कुछ डॉक्टर्स के अनुसार कुछ पर्यावरणीय कारणों और आनुवंशिक कारणों की वजह से ऐसा होता है।डोपामाइन के स्तर के अलावा आनुवंशिकता भी इसका एक अन्य कारण होता है, जिसके लिए आपके जीन्स जिम्मेदार होते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इस बीमारी के साथ भी अच्छी और लम्बी जिंदगी जीते हैं। इसके अन्य कारणों को आज भी हमारे वैज्ञानिक खोज रहें हैं। पार्किंसंस से पहले मौत के अंतिम चरण भी जाने।
 

पार्किंसन रोग के लक्षण

सभी व्यक्तियों में पार्किंसंस रोग के लक्षण अलग तरह के हो सकते हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुषों को यह बीमारी अधिक प्रभावित करती है। इसके लक्षण या शुरुआती संकेत बहुत हल्के या न के बराबर होते हैं और इसके लक्षणों की खास बात यह है की ये शरीर के एक तरफ से शुरू होते हैं और दूसरी तरफ से प्रभावित होने के बावजूद, उस तरफ (जहां से लक्षण प्रारम्भ हुए) ज्यादा बदतर होते रहते हैं।
 
पार्किंसंस बीमारी के लक्षणों में निम्नलिखित लक्षण शामिल हो सकते हैं:
  • कम्पन: यह लक्षण इस बीमारी का सबसे आम लक्षण है, जो आमतौर पर शरीर के किसी एक अंग में शुरू होता है या अक्सर आपके हाथ या उँगलियों में होता है। यह अक्सर तब होता है जब आपका हाथ रेस्ट मोड पर होता है।
  • गति धीमी हो जाना (ब्रैडकेनेसिया): जैसे जैसे समय बीतता है इसके कारण मनुष्य की कार्य करने की गति धीमी होती जाती है, जिससे सरल कार्य भी कठिन लगने लगते हैं और कार्य को खत्म करने में समय लगने लगता है। 
  • मांसपेशियों का कठोर हो जाना: मांसपेशी कठोरता आपके शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। कठोर मांसपेशियां दर्दनाक हो सकती हैं और गति की सीमा को सीमित कर सकती हैं।
  • संतुलन में परेशानी: पार्किंसंस बीमारी के कारण आपको संतुलन में परेशानी का सामना करना पद सकता है साथ ही आपकी मुद्रा समान्य से कुछ अलग हो सकती हैँ।
  • स्वचालित कार्यो का न होना: इस बीमारी के चलते कुछ कार्य जैसे आँखे झपकना, चलते समय हाथों का हिलना, हंसना इत्यादि में परेशानी आने लगती है।
  • बोली में बदलाव: समय के साथ आपकी बोली में परिवर्तन आ सकता है, इस बीमारी के समय आपकी बोली में कभी कभी थोड़ी हिचकिचाहट आना, आवाज क निकलना इत्यादि समस्याएं आ सकती हैं।
  • लिखावट में बदलाव: इसमें आपको लिखने में परेशानी का सामना उठाना पड सकता है और आपकी लिखावट भी छोटी हो जाती है क्योंकि आपको लिखने में परेशानी होने लगती है।
पार्किंसंस बीमारी के कुछ अन्य लक्षण (Symptoms of Parkinson’s disease in Hindi) इस प्रकार हैं-
  • चिंता, असुरक्षा, और तनाव
  • उलझन (कन्फ्यूजन)
  • याद न रहना
  • डिमेंशिया (बुजुर्गों में अधिक आम)
  • कब्ज - Constipation Meaning in Hindi
  • डिप्रेशन
  • निगलने में कठिनाई होना
  • सूंघने की शक्ति कम हो जाना
  • अत्यधिक पसीना आना
  • सीधा दोष (ईडी)
  • त्वचा संबंधी समस्याएं
  • धीमा, शांत भाषण, और मोनोटोन आवाज
  • मूत्र आवृत्ति बढ़ जाना
  • सोने में परेशानी या अनिद्रा-
  • थकान - 
और पढ़े: जानिए गले में टॉन्सिल्स क्या और कैसे होता है?

पार्किंसन बीमारी के शिकार कौन होते हैं? | Who gets Parkinson’s disease in Hindi

Parkinson’s disease in Hindi
  • आयु इस बीमारी के होने का और इसके विकास का सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है, ज्यादातर लोग जो इस बीमारी के शिकार होते हैं उनकी आयु 60 वर्ष या उससे अधिक होती है।
  • पुरुषों में इस बीमारी के होने की सम्भावना महिलाओं की तुलना में 2 गुना ज्यादा तक होती है।
  • कुछ प्रतिशत लोग आनुवंशिकता के कारण भी इस बीमारी का शिकार हो सकते हैं।
  • सिर में चोट लगने या किसी बीमारी की वजह से भी कोई व्यक्ति इसका शिकार हो सकता है।
  • फलों और सब्जियों पर छिड़के जाने वाले कीटनाशक रसायनो की वजह से भी इस बीमारी के होने का खतरा बना रहता है।
इसके बारे में भी विस्तार से पढ़ें: Motor Neuron Disease in Hindi

पार्किंसंस बीमारी का इलाज हिंदी में

पार्किंसंस चमत्कार इलाज करने के लिए वर्तमान में कोई इलाज नहीं है। परन्तु इसके लक्षणों को सुधरने के लिए और कम करने के लिए बहुत सारी थेरेपी उपलब्ध हैं। इन सभी थेरेपी को मस्तिष्क में डोपामाइन की जगह, डोपामाइन की नकल करने, या डोपामाइन के प्रभाव को लंबे समय तक अपने ब्रेकडाउन को रोककर मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
 
कई अध्ययनों से पता चला है कि अगर इन थेरेपी का प्रयोग इसके लक्षणों को कम कर देता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता बढ़ जाती है।पार्किंसंस रोग के लिए सबसे प्रभावी उपचार लेवोडापा (सिनेमेट) है, जिसे मस्तिष्क में डोपामाइन में परिवर्तित किया जाता है। हालांकि, लेवोडापा के साथ बहुत लम्बा इलाज करने से इसके कुछ बुरे साइड इफेक्ट्स होते हैं, जिसके कारण कभी कभी इस बीमारी के लक्षण गंभीर भी हो सकते हैं।
 
Levodopa and carbidopa uses in hindi - लेवोडोपा को अक्सर कार्बिडोपा (सिनेमेट) के साथ लेने की सलाह दी जाती है, जो मस्तिष्क तक पहुंचने से पहले लेवोडोपा को तोड़ने से रोकता है। कार्बिडोपा के साथ लेवोडापा लेने से इसके दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं।पार्किंसंस रोग के शुरूआती दिनों में, डोपामाइन (डोपामाइन एगोनिस्ट) की क्रिया की नकल करने वाले पदार्थ, और डोपामाइन के टूटने को कम करने वाले पदार्थ (मोनोमाइन ऑक्सीडेस प्रकार बी (एमएओ-बी) अवरोधक) बीमारी के लक्षणों से मुक्त होने में बहुत मदद कर सकते हैं।
 
इन सभी पदार्थों के साइड इफेक्ट्स काफी आम होते हैं, जिनमें शरीर के टिस्यू में द्रव संचय के कारण सूजन आना, आलस आना, कब्ज - Constipation in Hindi, चक्कर आना, जी मिचलाना - Nausea Meaning in Hindi इत्यादि शामिल है।
 
सर्जरी: कुछ लोगों के लिए जिनमें इस बीमारी के लक्षण अनियंत्रित होते है उनके इलाज के लिए सर्जरी ही एकमात्र विकल्प बचता है। इसके डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS) में आपका सर्जन आपके दिमाग के उस हिस्से में जो सभी कार्यों को करने के लिए आदेश देताहै, उसे उत्तेजिन करने के लिए उसमे इलेक्ट्रोड्स लगायेगा। एक अन्य प्रकार की सर्जरी में आपका सर्जन दिमाग के जिस हिस्से में पार्किंसन बीमारी के लक्षण होते हैं उन्हें ही नष्ट क्र देता है।
 
स्टेम सेल थेरेपी: स्टेम सेल थेरेपी इसके इलाज के लिए एक अन्य विकल्प है। इसमें स्टेम सेल से बनने वाली सेल्स से डोपामाइन का उत्पादन किया जाता है। पार्किंसन बीमारी के इलाज के लिए यह एक कारगर थेरेपी हो सकती है परन्तु इससे पहले काफी शोध की आवश्यकता होती है।
दवाइयों और सर्जरी के अलावा, सामान्य जीवनशैली में परिवर्तन (आराम और व्यायाम), शारीरिक चिकित्सा, व्यावसायिक चिकित्सा, और भाषण चिकित्सा भी पार्किंसन बीमारी में लाभकारी हो सकती है।
 
इसके बारे में भी विस्तार से पढ़ें: Schizophrenia in Hindi 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों

पार्किंसन रोग क्यों होता है?

पार्किंसंस रोग एक मस्तिष्क की स्थिति है जिसके परिणामस्वरूप अनजाने में या अनियंत्रित आंदोलनों जैसे कांपना, कठोरता, और संतुलन और समन्वय के साथ समस्याएं होती हैं।

पार्किंसंस रोग कैसे होता है?

बेसल गैन्ग्लिया, मस्तिष्क का एक क्षेत्र जो आंदोलन को नियंत्रित करता है, तंत्रिका कोशिका हानि और / या मृत्यु का अनुभव करता है, जिसके परिणामस्वरूप पार्किंसंस रोग के सबसे अधिक ध्यान देने योग्य लक्षण और लक्षण दिखाई देते हैं। ये तंत्रिका कोशिकाएं, या न्यूरॉन्स, सामान्य रूप से महत्वपूर्ण मस्तिष्क न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन उत्पन्न करते हैं।

क्या पार्किंसंस रोग ठीक हो सकता है?

पार्किंसंस रोग का वर्तमान में कोई ज्ञात इलाज नहीं है, हालांकि ऐसे उपचार हैं जो लक्षण राहत और जीवन रखरखाव की गुणवत्ता में सहायता कर सकते हैं। फिजियोथेरेपी जैसे सहायक उपचार इनमें से कुछ उपचार हैं। दवाई।

पार्किंसंस रोग के पहले लक्षण क्या हैं?

रोग के शुरुआती लक्षण धीरे-धीरे और सूक्ष्म रूप से प्रकट होते हैं। उदाहरण के लिए, लोगों को हल्के झटके या कुर्सी से उठने में कठिनाई का अनुभव हो सकता है। वे महसूस कर सकते हैं कि उनकी आवाज़ बहुत शांत है या उनका लेखन सुस्त, तंग या छोटा है।

पार्किंसंस के अंतिम चरण के लक्षण क्या हैं?

1. आपकी बोलने की शैली एक नरम, लंबी आवाज़ है। 2. गिरना और समन्वय और संतुलन की समस्या होना। 3. ठंड एक चौंकाने वाली, हालांकि संक्षिप्त, गतिहीनता है जो तब होती है जब आप चलना या मुड़ना शुरू करते हैं। 4. व्हीलचेयर या अन्य सहायता के बिना घूमना-फिरना।